वीरों को मिले भारत रत्न और शहीद का दर्जा
क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद जी की जयंती पर श्रध्दा सुमन पुष्प अर्पित कर किया याद , क्रांतिकारी संगठन आप और हम राष्ट्रीय,,,,,,
उत्तर प्रदेश ,
टूंडला शिखरा आश्रम, विजय दीप जनसेवा केंद्र पर , देश की आजादी के महान
क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ,
जी की जयंती क्रान्तिकारी संगठन आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन द्वारा गुरु नानक रसोई पर शहीद की जयंती के शुभ अवसर पर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी एस बेदी की उपस्थिति में एक आयोजित कार्यक्रम रखा गया
श्री बेदी और दीपक सलूजा पश्चिमी प्रदेश प्रभारी ने शहीद चन्द्रशेखर आजाद जी के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन पुष्प अर्पित कर नमन किया इसी तरह सभी पदाधिकारियों ने अमर शहीद को नमन कर याद किया ,
श्री बेदी ने आजाद जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा
चन्द्रशेखर 'आजाद (23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा नामक गांव में हुआ था वर्तमान में इसका नाम चन्द्रशेखर आजाद नगर है जो मध्य प्रदेश में है
गरीबी में इनका पालन पोषण हुआ
कुस्ती, तीरंदाजी निशानेबाजी का शौक था , जब बड़े हुए तो देश को आजाद कराने का सपना उन्होंने अपनी आंखों में छिपाए रखा ,
गांधी जी द्वारा 1920 में चलाए जा रहे असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर शामिल हो गए उस वक्त इनकी उम्र 15 वर्ष के आस पास थी
ब्रिटिश हुकूमत ने कुछ आंदोलन कारियों को गिरफ्तार कर लिया उसमे आजाद भी थे जब मजिस्ट्रेट के सामने इनको पेश किया गया तो उसने इनसे इनका नाम पूछा तुम्हारा नाम किया है तो बड़े बेबाकी से बताया , आजाद पिता का पूछा तो स्वाधीनता बताया उसके बाद घर का तो जेल खाना बताया अंग्रेज जज आजाद जी के उत्तर सुनकर बौखला गया और नाबालिग देखते हुए 15 कोड़ों की सजा सुनाई , हर कोड़े पर आजाद बंदे मातरम, कहते रहे ,
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ां,व शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के परम मित्र थे
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के
प्रमुख संगठन:
हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन-के प्रमुख नेता
सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा सरदार भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।ऐसा भी कहा जाता हैं कि आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिश हुक़ूमत ने 700 लोग नौकरी पर रखे हुए थे। आजाद के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी अंग्रेजो के मुखबिर बन गया और उसने आजाद जी की मुखबिरी की थी और 27 फरवरी 1931 इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश दुश्मनों ने आजाद को चारों ओर से घेर लिया तो भारत मां के लाल ने ललकारते हुए ,कहा किसकी मजाल ,छेड़े इस दिलेर को , गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को
दुश्मनों को ढेर करते हुए भारत मां के इस लाल ने अपनी पिस्तौल की बची आखिरी गोली अपने को मार कर वीर गति को हमेशा के लिए शहीद हो गए।
ऐसे महान वीरों को आजाद भारत की सरकारों द्वारा भारत रत्न और शहीद का दर्जा जैसा सम्मन न देना देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है
उपस्थिति
बी एस बेदी राष्ट्रीय अध्यक्ष, दीपक सलूजा पश्चिमी प्रदेश प्रभारी, भुवनेश चंद , जगदीस कुमार , संजीव कुमार, फकीरा भाई ,नकुल , सरदार इंदर पाल सिंह प्रदेश सचिव , पवन कक्कड़ प्रदेश संगठन मंत्री, दीपक सलूजा पश्चिमी प्रदेश प्रभारी , पवन कक्कड़ सरदार इंदर पाल सिंह ,आदि लोग मौजूद रहे।
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